Class 12th Hindi ‘Shiksha’ Chapter Subjective Question | कक्षा 12 हिन्दी ‘शिक्षा ‘ चैप्टर का महत्वपूर्ण प्रशन

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Class 12th Hindi ‘Shiksha’ Chapter Subjective Question | कक्षा 12 हिन्दी ‘शिक्षा ‘ चैप्टर का महत्वपूर्ण प्रशन


प्रश्न 1. शिक्षा का क्या अर्थ है एवं इसके क्या कार्य हैं? स्पष्ट करें । 

उत्तर – शिक्षा का व्यापक अर्थ जीवन के सत्य से परिचित होना तथा संपूर्ण जीवन प्रक्रिया को समझने में हमारी मदद करना है। सामान्य अर्थों में शिक्षा का अभिप्राय है किसी विषय का अध्ययन करने अपने ज्ञान को बढ़ाना जीवन विलक्षण है, ये पक्षी, फूल, वृक्ष, आसमान, सितारे, जीव-जन्तु सब हमारा जीवन हैं। जीवन दीन है, जीवन अमीर भी । जीवन गूढ़ है, जीवन मन की प्रच्छन्न वस्तुएँ ईर्ष्याएँ, महत्त्वाकांक्षाएँ, वासनाएँ, भय, सफलताएँ एवं चिंताएँ हैं। हम सदैव जीवन से व्याकुल, चिंतित और भयभीत बने रहते हैं। शिक्षा इन सब का निराकरण करती है। शिक्षा हमें समाज के ढाँचे के अनुकूल बनने में हमारी मदद करती है। हमें पूर्णतया स्वतंत्र बनाती है। सामाजिक समस्याओं का निराकरण करना भी शिक्षा का ही कार्य है ।


प्रश्न 2. ‘जीवन क्या है?’ इसका परिचय लेखक ने किस रूप में दिया है? 

उत्तर – लेखक के अनुसार जीवन बड़ा ही अद्भुत असीम और अगाध है । यह अनंत रहस्यों को अपने अंदर समेटे हुए हैं । यह एक विशाल साम्राज्य है जहाँ हम मानव कर्म करते हैं। 

लेखक जीवन का परिचय देते हुए कहता है कि जीवन बहुत विलक्षण है। ये पक्षी, फूल, वृक्ष, आसमान, सितारे, सरिताएँ मत्स्य आदि सब हमारा जीवन है। जीवन दीन है तथा अमीर भी है। जीवन समुदायों, जातियों और देशों का पारस्परिक सतत संघर्ष है। ईर्ष्याएँ, महत्वाकांक्षाएँ, वासनाएँ, भय, सफलताएँ, चिंताएँ आदि हैं इतना ही नहीं जीवन इससे भी कहीं ज्यादा है ! बहुधा हम स्वयं को जीवन के केवल एक छोटे से कोने को समझने के लिए ही तैयार करते हैं । हम कुछ परीक्षाएँ उत्तीर्ण करके कोई उद्योग ढूँढ़ कर विवाह करके बच्चे पैदा करके जीवन को जीते जाते हैं तथा इस प्रकार अधिकाधिक यंत्रवत बन जाते हैं। हम सदैव जीवन से व्याकुल, चिंतित और भयभीत बने रहते हैं । इस संपूर्ण जीवन की प्रक्रिया को समझने में हमारी सहायता केवल शिक्षा ही कर सकती है।


प्रश्न 3. ‘बचपन से ही आपका ऐसे वातावरण में रहना अत्यंत आवश्यक है जो स्वतंत्रतापूर्ण हो ।’ क्यों ? 

उत्तर – हमारे लिए बचपन से ही ऐसे वातावरण में रहना अत्यावश्यक है जो स्वतंत्रतापूर्ण हो, क्योंकि हममें से ज्यादातर व्यक्तियों के अंदर बड़े होने के साथ-साथ भय की भावना घर कर जाती है। जहाँ भय है, वहाँ मेधा नहीं है। इसी कारण हमें बचपन से ही ऐसी स्वतंत्रता प्राप्त होनी चाहिए कि हम जीवन की संपूर्ण प्रक्रिया की भली प्रकार से समझ सकें ।


प्रश्न 4. जहाँ भय है वहाँ मेधा नहीं हो सकती। क्यों? 

उत्तर – यह कथन पूर्णतया सत्य है कि जहाँ भय है वहाँ मेधा नहीं है। निस्संदेह मेधा शक्ति भय के कारण दब जाती है क्योंकि भय के कारण मनुष्य किसी भी कार्य को स्वतंत्रतापूर्वक नहीं कर पाता । मेधा शक्ति वह शक्ति है जिससे आप भय और सिद्धांतों की अनुपस्थिति में स्वतंत्रता के साथ सोचते हैं ताकि आप सत्य तथा वास्तविकता की खोज कर सकें। अगर आप भयभीत हैं तो आप कभी मेधावी नहीं हो सकेंगे। भयभीत मनुष्य किसी भी कार्य को करने में हिचकिचाता है। मनुष्य की महत्त्वाकांक्षा चाहे आध्यात्मिक हो या सांसारिक, वह सदैव चिंता और भय को जन्म देती है। अतः महत्वाकांक्षा ऐसे मन का निर्माण करने में सहायक ही हो सकती जो सुस्पष्ट, सरल एवं सीधा हो ।


प्रश्न 5. जीवन में विद्रोह का क्या स्थान है?. 

उत्तर – जब कोई व्यक्ति जीवन के ऐश्वर्य, इसकी अनंत गहराई तथा इसके अद्भुत सौन्दर्य का अनुभव कर लेता है तो जीवन के प्रति उत्पन्न हल्की सी कसमसाहट भी उसमें विद्रोह का भाव जगा देती है। मनुष्य इस संगठित धर्म, परम्परा और इस सड़े हुए समाज के खिलाफ विद्रोह कर देता है ताकि वह अपने लिए सत्य की खोज कर सके। जिन्दगी में सत्य की खोज तभी संभव है जब स्वतंत्रता हो तथा अंतरमन में सतत् क्रांति की ज्वाला प्रकाशमान हो । समाज में व्यक्ति सुरक्षित रहना चाहता है तथा सुरक्षा में जीने के लिए भय से मुक्त होना आवश्यक है। इसके लिए व्यक्ति को विद्रोह करना पड़ता है। अतः जीवन में विद्रोह एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है ।


प्रश्न 6. व्याख्या करें- 

यहाँ प्रत्येक मनुष्य किसी न किसी के विरोध में खड़ा है और किसी सुरक्षित स्थान पर पहुँचने के लिए प्रतिष्ठा, सम्मान, शक्ति व आराम के लिए निरंतर संघर्ष कर रहा है। 

उत्तर- इस संसार में हर आदमी किसी न किसी के विरोध में खड़ा है अर्थात् प्रत्येक आदमी अपने सुख के लिए दूसरे का विरोध कर रहा है। यह विरोध कई चीजों को लेकर है, जैसे किसी सुरक्षित स्थान पर पहुँचने के लिए अथवा प्रतिष्ठा, सम्मान, शक्ति तथा आराम की प्राप्ति के लिए। मनुष्य इन सबके लिए निरंतर संघर्षशील रहता है तथा एक-दूसरे का विरोध करता रहता है ।


प्रश्न 7. नूतन विश्व का निर्माण कैसे हो सकता है? 

उत्तर – समाज में सर्वत्र भय का वातावरण है। लोगों में एक-दूसरे के प्रति ईष्या द्वेष का भाव भरा पड़ा है। इस स्थिति से दूर पूर्ण स्वतंत्र, निर्भयतापूर्ण वातावरण बनाकर ही हम एक नूतन विश्व का निर्माण कर सकते हैं। इसके लिए हमें स्वतंत्रतापूर्ण वातावरण का निर्माण करना होगा, जिसमें व्यक्ति अपने लिए सत्य की खोज कर सके। क्योंकि सत्य की खोज केवल वही आदमी कर सकता है जो निरंतर इस विद्रोह की अवस्था में रह सकते हैं। वे परंपराओं को स्वीकार करने वाले और उनका अनुकरण करने वाले सत्य की खोज नहीं कर सकते। सत्य, परमात्मा अथवा प्रेम तभी उपलब्ध हो सकते हैं जब हम अविच्छिन खोज करते हैं, सतत् निरीक्षण करते हैं और निरन्तर सीखते हैं। मनुष्य अगर स्वतंत्रतापूर्ण जीवन व्यतीत करेगा तो निस्संदेह ही नूतन विश्व का निर्माण होगा।


प्रश्न 8. क्रांति करना, सीखना और प्रेम करना तीनों पृथक-पृथक प्रक्रियाएँ नहीं हैं, कैसे ? 

उत्तर- क्रांति करना, सीखना और प्रेम करना, इन तीनों प्रक्रियाओं में मनुष्य को विरोध की भावना को अपनाना पड़ता है। उसे अपनी महत्वाकांक्षाओं का दमन करना पड़ता है तथा अपने निजी स्वार्थ से ऊपर उठना पड़ता है। इस कारण इन तीनों को पृथक्-पृथक् नहीं माना जा सकता है ।


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