Class 12th Hindi ‘Jhoothan’ Chapter Subjective Question | कक्षा 12 हिन्दी ‘जूठन’ चैप्टर का महत्वपूर्ण प्रशन
प्रश्न 1. विद्यालय में लेखक के साथ कैसी घटनाएँ घटती हैं?
उत्तर – विद्यालय का हेडमास्टर बहुत कड़क स्वभाव का था। एक बार उसने लेखक को बुलाकर उसका नाम पूछा। जब हेडमास्टर को पता चला कि यह नीची जाति है तो उसने लेखक का शोषण करना शुरू कर दिया । लेखक को स्कूल के कमरे तथा बरामदे साफ करने पड़े। दूसरे दिन भी स्कूल जाते ही हेडमास्टर ने उसे झाडू के काम पर लगा दिया। तीसरे दिन जब वह चुपचाप कक्षा में जाकर बैठ गया तो हेडमास्टर उसे घसीटकर बाहर लाया तथा उसे वह रोता-बिलखता हेडमास्टर के अत्याचार का शिकार होता रहा। पूरे मैदान में झाडू लगाने को कहा।
प्रश्न 2. पिताजी ने स्कूल में क्या देखा? उन्होंने आगे क्या किया? पूरा विवरण अपने शब्दों में लिखें।
उत्तर – एक दिन जब लेखक के पिताजी स्कूल के पास से गुजरे तो उन्होंने अपने बेटे को स्कूल के मैदान में झाडू लगाते देखा । इस पर उन्होंने पहले तो लेखक से सारा घटनाक्रम जाना तथा फिर उसके हाथ से झाडू छीनकर दूर फेंक दी। तत्पश्चात वे गुस्से से चिल्लाने लगे कि वो कौन-सा मास्टर है जो मेरे लड़के से झाडू लगवाता है ? हेडमास्टर ने भी तैश में आकर उन्हें गाली देकर धमकाया पर पिताजी ने साहस के साथ उसका सामना किया तथा उसे खूब भला-बुरा सुनाया ।
प्रश्न 3. बचपन में लेखक के साथ जो कुछ हुआ, आप कल्पना करें कि आपके साथ भी हुआ हो-ऐसी स्थिति में आप अपने अनुभव और प्रतिक्रिया को अपनी भाषा में लिखिए ।
उत्तर- बचपन में लेखक के साथ ऐसी अनेक घटनाएँ घटती हैं जो उसे भीतर तक प्रभावित करती हैं। स्कूल की घटना उनमें सबसे मार्मिक तथा प्रभावशाली है। लेखक के साथ जो कुछ हुआ अगर ऐसा हमारे साथ भी हो तो हमें बहुत ही बुरा तथा अपमानजनक महसूस होगा। हमें ऐसा व्यवहार करने वाले व्यक्ति पर बहुत क्रोध आएगा। हम उसके व्यवहार का डटकर विरोध करेंगे तथा यह जानने का प्रयास भी करेंगे कि उसके द्वारा ऐसा करने की वजह क्या है। साथ ही ऐसी घटना किसी और के साथ न घटे इसके लिए भी हम प्रयास करेंगे।
प्रश्न 4. किन बातों को सोचकर लेखक के भीतर काँटे जैसे उगने लगते हैं?
उत्तर- लेखक जब छोटा था तो उसके परिवार के लोगों को दूसरों के घरों में काम करना पड़ता था । उन्हें मवेशियों की सेवा करने तथा उनका गोबर हटाने के बदले फसल के वक्त थोड़ा-सा अनाज मिलता था तथा खाने के लिए भूसी से बनी रोटी या जूठन मिला करती थी। शादी-ब्याह के अवसर पर भी उन्हें मेहमानों के खाना खा लेने के बाद जूठी पत्तलों में बची जूठन ही दी जाती थी। पत्तलों से मिले पूरियों के टुकड़ों को वे सुखा लेते थे तथा बरसात के दिनों में पानी में उबालकर नमक-मिर्च छिड़ककर खाते थे। ये सब बातें सोचकर लेखक विचलित हो जाता है और उसके भीतर काँटे जैसे उगने लगते हैं ।
प्रश्न 5. “ दिन रात मर-खप कर भी हमारे पसीने की कीमत मात्र जूठन, फिर भी किसी को शिकायत नहीं। कोई शर्मिंदगी नहीं, कोई पश्चाताप नहीं।” ऐसा क्यों? सोचिए और उत्तर दीजिए ।
उत्तर – लेखक के परिवार को दिन-रात की कठोर मेहनत के बाद भी केवल जूठन ही मिलती थी । फिर भी वे न तो कोई शिकायत करते थे तथा न ही उन्हें कोई शर्मिंदगी या पश्चताप होता था । यही हाल उनके जैसे अन्य परिवारों का भी था । ऐसा इसलिए क्योंकि उस समय जो वर्ण व्यवस्था थी उसमें इस वर्ग के लोगों के लिए इस प्रकार के काम निर्धारित किए गए थे । उच्च वर्ग के लोग उन्हें अपने पैर की जूती समझते थे । निम्न वर्ग के लोगों को इस व्यवस्था के विरुद्ध बोलने तक का अधिकार नहीं था। लोगों ने इसे ही अपना भाग्य मान लिया था । इसी कारण वे किसी भी बात का विरोध नहीं करते थे ।
प्रश्न 6. सुरेन्द्र की बातों को सुनकर लेखक विचलित क्यों हो जाते हैं?
उत्तर – जब सुरेन्द्र कहता है “भाभीजी, आपके हाथ का खाना तो बहुत जायकेदार है। हमारे घर में तो कोई भी ऐसा खाना नहीं बना सकता है” तो लेखक यह सुनकर विचलित हो उठता है। उसे याद आता है कि उसका बचपन सुरेन्द्र के दादा और पिता की जूठन पर ही बीता था। वह जूठन भी उन्हें दिनभर की हाड़-तोड़ मेहनत और भिन्ना देने वाली दुर्गन्ध और गालियों व धिक्कार के बाद मिलती थी ।
सुरेन्द्र की बड़ी बुआ की शादी में दिन-रात की मेहनत करने के बावजूद एक पत्तल भोजन माँगे जाने पर सुरेन्द्र के दादाजी ने लेखक की माँ को कितना धिक्कारा था । यह सब लेखक की स्मृतियों में किसी चित्रपटल की भाँति पलटने लगा था ।
आज उसी घर का लड़का सुरेन्द्र उनके घर का भोजन कर रहा है तथा उनकी बड़ाई कर रहा है। ये सब बातें लेखक को विचलित कर देती हैं।
प्रश्न 7. घर पहुँचने पर लेखक को देख उनकी माँ क्यों रो पड़ती हैं?
उत्तर – जब लेखक नौंवी कक्षा में पढ़ता था तो उस वक्त उनके घर की आर्थिक स्थिति बहुत खराब थी। एक बार माँ के कहने पर उसे चाचा के साथ एक मरे हुए बैल की खाल निकालने के लिए जाना पड़ा । लेखक की इच्छा नहीं होते हुए भी चाचा ने उससे जबरदस्ती खाल निकालने का काम करवाया । यहाँ तक कि खाल की गठरी लेकर भी उसे ही घर तक चलना पड़ा। वह बहुत परेशान था। एक भय लगातार उसका पीछा कर रहा था कि उसका कोई सहपाठी उसे देख न ले । घर तक पहुँचते-पहुँचते वह काफी थक चुका था, उसकी टाँगे जवाब दे चुकी थीं। उसकी यह हालत देखकर उसकी माँ को बहुत दुःख हुआ तथा वह रो पड़ी ।
प्रश्न 8. व्याख्या करें-
‘कितने क्रूर समाज में रहे हैं हम, जहाँ श्रम का कोई मोल नहीं बल्कि निर्धनता को बरकरार रखने का षड्यंत्र ही था यह सब ।’
उत्तर – प्रस्तुत गद्यांश दलित आंदोलन के सुप्रसिद्ध लेखक ओमप्रकाश बाल्मीकि द्वारा रचित आत्मकथानक ‘जूठन’ से उद्धृत है। लेखक ने इस गद्यांश के माध्यम से समाज की विसंगतियों पर चोट की है।
लेखक के परिवार को श्रमसाध्य कार्य करने के बावजूद दो जून की रोटी भी नसीब नहीं होती थी । विद्यालय का हेडमास्टर उस जैसे निम्न जाति के लड़के को विद्यालय में पढ़ाना नहीं चाहता था । पत्तलों की जूठन को ही उसका निवाला माना जाता है।
समाज का शोषण तंत्र इतना शक्तिशाली है कि शोषक बिना पैसे के काम करवाता है तथा इस श्रम साध्य के बदले में गालियाँ मिलती हैं। इस समाज में मेहनत की कोई कीमत नहीं है । लेखक का मानना है कि यह सब उनकी निर्धनता को बरकरार रखने के लिए किया जा रहा है ।
प्रश्न 9. लेखक की भाभी क्या कहती है? उनके कथन का महत्त्व बताइए ।
उत्तर – जब लेखक चमड़े की गठरी सिर पर रखे घर पहुँचा तो वह बहुत थक चुका था वह सिर से पैर तक गंदगी से भरा हुआ था तथा उसके कपड़ों पर खून के धब्बे दिखाई दे रहे थे । लेखक की ऐसी हालत देखकर उसकी भाभी ने लेखक की माँ से कहा ‘इनसे ये सब न करवाएं। भूखे रह लेंगे पर इन्हें इस गंदगी में ना घसीटो।’ इस कथन का मतलब था कि लेखक अभी छोटा है। यह उम्र उसके पढ़ने-लिखने की है । अगर हम इसको इन सब कामों में लगायेंगे तो उसकी पढ़ाई में बाधा उत्पन्न होगी । भाभी का यह कथन लेखक के लिए बहुत महत्व रखता है। उसके ये शब्द लेखक को आज भी अंधेरे में रोशनी दिखाते हैं ।
प्रश्न 10. इस आत्मकथांश को पढ़ते हुए आपके मन में कैसे भाव आए, सबसे अधिक उद्वेलित करने वाला अंश कौन है, अपनी टिप्पणी लिखिए ।
उत्तर- इस आत्मकथांश को पढ़ते हुए हमारे मन में पीड़ा, करुणा तथा दया के भाव आते हैं । यह कहानी अपनी संवेदना तथा मर्मस्पर्शिता के कारण मन पर गहरा प्रभाव छोड़ती हैं । लेखक के साथ घटी घटनाएँ मन को उद्वेलित करने वाली हैं। आत्मकथांश का सबसे अधिक उद्वेलित करने वाला अंश वह है जब सुखदेव सिंह की बहन की शादी में दिन-रात जी-तोड़ मेहनत करने के बाद लेखक की माँ उनसे खाना माँगती है तथा सुखदेव सिंह जूठी पत्तलों के टोकरे की तरफ इशारा करके कहता है, “टोकरा भरके जो जूठन ले जा रही है …… ऊपर से जाकतों के लिए खाना मांग री है। अपणी औकात में रह चूहड़ी। उठा टोकरा दरवाजे से और चलती बन ।”……. यह घटना हमें उस समय की सामाजिक व्यवस्था पर सोचने के लिए मजबूर करती है ।
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