Class 12th Hindi ‘Ardhnarishwar’ Chapter Subjective Question | कक्षा 12 हिन्दी ‘अर्धनारीश्वर’ चैप्टर का महत्वपूर्ण प्रशन

Class 12th Hindi

Class 12th Hindi ‘Ardhnarishwar’ Chapter Subjective Question | कक्षा 12 हिन्दी ‘अर्धनारीश्वर’ चैप्टर का महत्वपूर्ण प्रशन


प्रश्न 1. ‘यदि संधि की वार्ता कुंती और गांधारी के बीच हुई होती, तो बहुत संभव था कि महाभारत न मचता’ । लेखक के इस कथन से क्या आप सहमत हैं? अपना पक्ष रखें। 

उत्तर- मैं लेखक के इस विचार से काफी हद तक सहमत हूँ। हमारे समाज में नारी का सम्मान किया जाता है, माताएँ पूजनीया होती हैं। पुरुष अपने कठोर स्वभाव के कारण अपने को ही सर्वाधिक महत्त्व देता है। किन्तु नारी में दया, ममता तथा कोमलता के गुण विद्यमान होते हैं अगर महाभारत के युद्ध से पूर्व हुई संधि वार्ता कुंती व गांधारी के मध्य होती तो यह संभव था कि वे अपने पुत्रों को समझा लेतीं तथा युद्ध की नौबत नहीं आने देतीं।


प्रश्न 2. अर्धनारीश्वर की कल्पना क्यों की गई होगी? आज इसकी क्या सार्थकता है? 

उत्तर – अर्धनारीश्वर की कल्पना द्वारा इस बात का संकेत देने का प्रयास किया गया है कि नर-नारी पूर्ण रूप से समान हैं। उनमें से एक के गुण दूसरे के दोष नहीं बन सकते। अगर नर अपने अंदर नारी के भी कुछ गुण समाहित कर लेता है तो इससे उनकी मर्यादा कम नहीं होती, बल्कि उनकी पूर्णता में वृद्धि होती है । 

वर्तमान में इसकी सार्थकता बहुत कम हो गई है। एक सीमित क्षेत्र में बंध कर रह गई है। नारी को पुरुष के समान महत्त्व नहीं दिया जाता है। पुरुष अपनी इच्छा के अनुसार कार्य करता है। उसे मात्र भोग-विलास की वस्तु समझा जाता है तथा उसका शोषण आम बात है। समाज की इस संकीर्ण मानसिकता ने स्वयं नारी की मानसिकता में भी एक हीन भाव भर दिया है। वह स्वयं को कमज़ोर तथा निर्बल समझने लगी है। हालाँकि आज नारी की स्थिति में फिर कुछ सुधार नजर आ रहा है तथा वह अपने अधिकारों के प्रति सजग हुई है।


प्रश्न 3. रवींद्रनाथ, प्रसाद और प्रेमचंद के चिंतन से दिनकर क्यों असंतुष्ट हैं? 

उत्तर- दिनकर जी, रवींद्रनाथ, प्रसाद तथा प्रेमचंद के चिंतन से काफी असंतुष्ट नजर आते हैं क्योंकि इन तीनों ने नारी को कोमल, मोहक तथा आकर्षक वस्तु माना है। उनके चिंतन में नारी का अर्धनारीश्वर रूप कहीं प्रकट नहीं हो रहा है। 

रवींद्रनाथ का कहना है कि नारी की सार्थकता उसकी भंगिमा के मोहक और आकर्षक होने में है। पृथ्वी की शोभा, आलोक तथा प्रेम की प्रतिमा बनने में है। कर्मकीर्ति, वीर्यबल और शिक्षा-दीक्षा लेकर नारी को क्या करना है। वहीं प्रेमचंद कहते हैं कि पुरुष नारी के गुण अपनाकर देवता बन जाता है, किंतु जब नारी नर के गुण सीखती है तो वह राक्षसी के समान हो जाती है। इसी प्रकार प्रसाद जी भी नारी को पुरुषों के क्षेत्र से पृथक रखने का समर्थन करते हैं। इन तीन महान चिंतकों के नारी के प्रति इस तरह के भाव दिनकर जी को पसंद नहीं आते।


प्रश्न 4. प्रवृत्तिमार्ग और निवृत्तिमार्ग क्या है? 

उत्तर- जिन पुरुषों ने जीवन से आनंद पाने की इच्छा से नारी को गले लगाया, उन्हें प्रवृत्तिमार्ग कहा गया । निवृत्तिमार्गी वे हैं। जिन्होंने नारी को अपने जीवन से परे ढकेल दिया, क्योंकि उन्हें नारी सुख की कोई कामना नहीं थी। इसके लिए उन्होंने संन्यास ग्रहण किया तथा वैयक्तिक मुक्ति की खोज को ही जीवन का सबसे बड़ा ध्येय माना ।


प्रश्न 5. बुद्ध ने आनंद से क्या कहा? 

उत्तर- महात्मा बुद्ध ने अपने शिष्य आनंद से कहा, “आनंद! मैंने जो धर्म चलाया था, वह पाँच सहस्त्र वर्ष तक चलनेवाला था, किन्तु अब वह पाँच सौ वर्ष तक ही चलेगा, क्योंकि मैंने नारियों को भिक्षुणी होने का अधिकार दे दिया है।”


प्रश्न 6. स्त्री को अहेरिन, नागिन और जादूगरनी कहने के पीछे क्या मंशा होती है, क्या ऐसा कहना उचित है ?

उत्तर- स्त्री को अहेरिन, नागिन और जादूगरनी कहने के पीछे पुरुष की मंशा नारी की अवहेलना करके खुद को श्रेष्ठ साबित करने की है। ऐसा करने से पुरुष को अपनी दुर्बलता को छिपाने तक कल्पित श्रेष्ठता को दुलारने में सहायता मिलती है, ऐसा कहना बिलकुल भी उचित नहीं है क्योंकि नारी आदरणीय तथा श्रद्धा के योग्य है। समाज में उसका भी बराबर का स्थान है। इसलिए नारी को ऐसी निकृष्ट उपाधियों से विभूषित करना पूर्णतः गलत है।


प्रश्न 7. नारी की पराधीनता कब से आरम्भ हुई? 

उत्तर- जब मानव जाति ने कृषि का आविष्कार किया तो पुरुष बाहर रहने लगा और नारी घर में रहने लगी। यहाँ से जिंदगी दो हिस्सों में विभाजित हो गई। घर का जीवन सीमित तथा बाहर का जीवन निस्सीम होता गया। छोटी जिंदगी बड़ी जिंदगी के अधिकाधिक अधीन होती चली गई। यहीं से नारी की पराधीनता का आरम्भ हो गया।


प्रश्न 8. प्रसंग स्पष्ट करें 

(क) प्रत्येक पत्नी अपने पति को बहुत कुछ उसी दृष्टि से देखती है जिस दृष्टि से लता अपने वृक्ष को देखती है।

(ख) जिस पुरुष में नारीत्व नहीं अपूर्ण है। 

उत्तर- (क) प्रस्तुत पंक्ति रामधारी सिंह दिनकर द्वारा रचित निबंध ‘अर्धनारीश्वर’ से उद्धृत है। इस पंक्ति में लेखक यह स्पष्ट करता है कि पुरुष के अधीन होने के कारण नारी स्वयं को काफी कमजोर तथा पुरुष पर आश्रित मानने लगी है। यही कारण है कि आज हर पत्नी अपने पति को उसी प्रकार देखती है जिस प्रकार एक लता अपने वृक्ष को देखती है। अर्थात् जिस प्रकार एक लता वृक्ष के अधीन रहकर ही फलती-फूलती है, उसी प्रकार एक स्त्री भी स्वयं को पुरुष के अधीन मानती हैं 

(ख) प्रस्तुत पंक्ति रामधारी सिंह ‘दिनकर’ द्वारा रचित निबंध ‘अर्धनारीश्वर’ से उद्धृत है। यहाँ लेखक नारी के कुछ गुण पुरुष में होने की बात करता है । वह कहना चाहता है कि पुरुष में भी दया, ममता तथा सहिष्णुता के गुण होने चाहिए। जिस पुरुष में नारीत्व के ये गुण नहीं हैं, वह अधूरा है । ये गुण पुरुष के पौरुष को घटाते नहीं बल्कि उसे पूर्णता प्रदान करते हैं ।


प्रश्न 9. जिसे भी पुरुष अपना कर्मक्षेत्र मानता है, वह नारी का भी कर्मक्षेत्र है । कैसे? 

उत्तर- लेखक श्री रामधारी सिंह दिनकर के अनुसार नर और नारी एक समान हैं। दोनों के जीवनोद्देश्य भी एक हैं। नारी केवल नर को रिझाने या उसे प्रेरणा देने का निमित मात्र नहीं है । जीवन यज्ञ में नारी का भी अपना हिस्सा है तथा वह हिस्सा सीमित नहीं है। दोनों के कर्मक्षेत्र समान हैं। जिस प्रकार पुरुष अपने उद्देश्य की सिद्धि के लिए मनमाने विस्तार का क्षेत्र अधिकृत कर लेता है, नारी को भी वही अधिकार प्राप्त होना चाहिए। 

अगर जीवन की प्रत्येक बड़ी घटना पुरुष प्रवृत्ति से नियंत्रित और संचालित है तो वास्तविक विकास के लिए नारी का योगदान अत्यंत आवश्यक है।


प्रश्न 10. ‘अर्धनारीश्वर’ निबंध में दिनकर जी के व्यक्त विचारों को सार रूप में प्रस्तुत करें। 

उत्तर- ‘अर्धनारीश्वर’ निबंध में दिनकर जी ने बड़े ही उत्तम विचारों को निरूपित किया है। वे उस विभेद को मिटाना चाहते हैं जोकि नर-नारी दोनों को अलग-अलग करता है। वे पुरुषों की उस मानसिकता को पूर्णतः गलत बताते हैं कि स्त्री के गुण अपनाकर पुरुष भी स्त्री के समान हो जाएगा। वे नारी को कोमल व गौण मानने की धारणा को नकारते हुए उसकी परवशता की स्थिति को एक बहुत बड़ा दोष कहते हैं। दिनकर जी के अनुसार पुरुष व नारी एक समान हैं। दोनों के अंदर एक-दूसरे के तत्त्व भी विद्यमान हैं। नारी पुरुष से किसी भी दशा में कमतर नहीं है। दिनकर जी के अनुसार नारी केवल नर को रिझाने या उसे प्रेरणा देने के लिए ही नहीं बनी है। जीवन रूपी यज्ञ में वह भी बराबर की हिस्सेदार है तथा यह हिस्सा घर तक ही सीमित नहीं बल्कि बाहर भी विस्तृत है। नर और नारी दोनों एक दूसरे के बिना अधूरे हैं। अतः पुरुष में नारीत्व की ज्योति जगनी चाहिए तथा नारी में पौरुष का आभास होना आवश्यक है । दिनकर जी की ‘अर्धनारीश्वर की सोच इसी बात की द्योतक है।


इन्हें भी पढ़े :- 


Class 12th Hindi ‘Baatchit’ Chapter Subjective Question | कक्षा 12 हिन्दी बातचीत चैप्टर महत्वपूर्ण प्रशन | Bihar Board 12th Exam Hindi Question, Class 12th Hindi ‘Sampurn Kranti’ Chapter Subjective Question | कक्षा 12 हिन्दी ‘सम्पूर्ण क्रांति’ चैप्टर का महत्वपूर्ण प्रशन, Class 12th Hindi ‘Ardhnarishwar’ Chapter Subjective Question | कक्षा 12 हिन्दी ‘अर्धनारीश्वर’ चैप्टर का महत्वपूर्ण प्रशन, Class 12th Hindi ‘Ardhnarishwar’ Chapter Subjective Question | कक्षा 12 हिन्दी ‘अर्धनारीश्वर’ चैप्टर का महत्वपूर्ण प्रशन

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *