Class 12th Hindi ‘O Sadanira’ Chapter Subjective Question | कक्षा 12 हिन्दी ‘ओ सदानीरा’ चैप्टर का महत्वपूर्ण प्रशन
प्रश्न 1. चंपारन क्षेत्र में बाढ़ की प्रचंडता के बढ़ने के क्या कारण हैं?
उत्तर- हम सब जानते हैं कि प्रकृति-प्रकोप के जितने भी आयाम हैं उनमें मानव का महत्त्वपूर्ण योगदान है। बाढ़, सूखा जैसे प्रकृति-प्रकोप मानवीय स्वार्थपरता के कारण ही बढ़े हैं। चंपारन क्षेत्र में भी बाढ़ की प्रचंडता के बढ़ने में मनुष्य की अहम भूमिका रही है। छत सात सौ वर्ष पूर्व चंपारन क्षेत्र घने जंगलों से घिरा हुआ था तथा ये जंगल चंपारन से गंगा तक फैले हुए थे। धीरे-धीरे लोग जंगलों को काटते गए । जंगलों में वृक्षों की जड़ें पानी को रोके रखती थीं । किन्तु जंगलों के कटने के बाद पानी विस्तृत भू-भाग में फैलना शुरू किया। इन्हीं सब कारणीं से चंपारन में बाढ़ की प्रचंडता बढ़ती गई ।
प्रश्न 2. इतिहास की कीमिआई प्रक्रिया का क्या आशय है?
उत्तर – कीमिआई प्रक्रिया में पारे को कुछ विलेपनों के साथ उच्च ताप पर गर्म करके सोने में बदला जाता है। पाठ के संदर्भ में कीमिआई प्रक्रिया का आशय देते हुए लेखक ने कहा है कि जिस प्रकार पारा कुछ अन्य पदार्थों के संगम से बिल्कुल भिन्न पदार्थ का रूप धारण कर लेता है, उसी प्रकार सुदूर दक्षिण की संस्कृति और रक्त इस प्रदेश की निधि बनकर एक अन्य संस्कृति का निर्माण कर गए । यही इतिहास की कीमिआई प्रक्रिया है ।
प्रश्न 3. धाँगड़ शब्द का क्या अर्थ है ?
उत्तर – ओराँव भाषा में ‘धाँगड़’ शब्द का अर्थ है – भाड़े का मज़दूर । धाँगड़ एक आदिवासी जाति है जिसे 18वीं शताब्दी के अंत में नील की खेती के सिलसिले में दक्षिण बिहार के छोटा नागपुर पठार क्षेत्र से चंपारन लाया गया था ।
घाँगड़ जाति आदिवासी जातियों- ओराँव, मुंडा, लोहार आदि के वंशज हैं
प्रश्न 4. थारूओं की कला का परिचय पाठ के आधार पर दें।
उत्तर- थारूओं की गृहकला अनुपम है। कला मूलतः उनके दैनिक जीवन का अंग है । थारूलोग धान रखने के पात्र को सींक से बनाते हैं, वह भी आकर्षक रंगों और डिज़ाइनों में। सींक तथा मूँज द्वारा घरेलू उपयोगिता के सामान बनाने में थारूओं का कोई सानी नहीं है। उनकी कला और उसके सौन्दर्य की झलक उनके गृह सामानों में मिलती है। धवल सीपों तथा बीजों से बनाए जाने वाले आभूषण जो उनकी संस्कृति की झलक भी दिखलाते हैं, उनका उदाहरण लेखक ने नववधू द्वारा अपने प्रियतम को कलेउ कराने के संदर्भ में झंकृत होने वाली वेणियों से दिया है।
थारूओं की कला उनकी मधुर और स्निग्ध संस्कृति की मनमोहक झलक प्रदर्शित करती है ।
प्रश्न 5. अंग्रेज नीलहे किसानों पर क्या अत्याचार करते थे?
उत्तर – जुल्म, अत्याचार और शोषण के द्वारा भारतीयों पर शासन करना अंग्रेज़ों की आदत बन गई थी। अंग्रेज़ किसानों से जबरदस्ती नील की खेती करवाते थे । हर किसान के लिए प्रति बीस कट्ठा जमीन में से तीन कट्ठा जमीन पर नील की खेती करना जरूरी था। चंपारन तथा उसके आस-पास के कुछ क्षेत्रों में नील की खेती कराने वाले गोरों का साम्राज्य था । निलहे किसान गोरों के हाथ की कठपुतली थे । नील की माँग कम हो जाने पर फिर भी अंग्रेज़ों ने निलहे किसानों से जबरदस्ती खेती करवानी जारी रखी। इस प्रकार निलहे किसान अंग्रेज़ों के अत्याचारों से पूरी तरह त्रस्त थे ।
प्रश्न 6. गंगा पर पुल बनाने में अंग्रेजों ने क्यों दिलचस्पी नहीं ली ?
उत्तर- अंग्रेज़ों ने गंगा पर पुल बनाने में इसलिए दिलचस्पी नहीं ली ताकि दक्षिण बिहार के बागी विचारों का असर चंपारन में जल्दी से न पहुँच पाए तथा चंपारन पर ब्रिटिश साम्राज्य की छत्रछाया वाला शासन अनवरत चलता रहा ।
प्रश्न 7. चंपारन में शिक्षा की व्यवस्था के लिए गाँधीजी ने क्या किया?
उत्तर – चंपारन में शिक्षा की व्यवस्था के लिए गाँधी जी ने कई महत्त्वपूर्ण कदम उठाए। इसके लिए उन्होंने बड़हरवा, मधुबन और भितिहरवा इन तीनों गाँवों में आश्रम विद्यालय स्थापित किए। कुछ निष्ठावान कार्यकर्त्ता तीनों गाँवों में तैनात किए गए। बड़हरवा विद्यालय को बवनजी गोखले तथा उनकी विदुषी पत्नी अवंतिकाबाई गोखले ने चलाया। मधुबन में नरहरिहास पारिख, उनकी पत्नी तथा उनके सेक्रेटरी महादेव देसाई को नियुक्त किया गया । भितिहरवा विद्यालय वयोवृद्ध डॉक्टर देव और सोपन जी द्वारा चलाया गया। बाद में पुंडलिक जी वहाँ गए । भितिहरवा आश्रम में स्वयं कस्तूरबा गांधी भी रहीं तथा इन कर्मठ और विद्वान स्वयंसेवकों की देखभाल की।
प्रश्न 8. गाँधी जी के शिक्षा संबंधी आदर्श क्या थे?
उत्तर- गाँधीजी के शिक्षा-संबंधी आदर्श बड़े ही स्पष्ट थे । वह स्कूलों में किसी तरह का नपा-तुला पाठ्यक्रम लागू नहीं करना चाहते थे बल्कि वे लीक से हटकर चलने के इच्छुक थे। उनके शिक्षा आदर्श के अनुसार, शिक्षा छोटे बच्चों के चरित्र और बुद्धि का विकास करने वाली होनी चाहिए। बच्चे ऐसे पुरुष और महिलाओं के सानिध्य में शिक्षा प्राप्त करें जो सुसंस्कृति हो तथा जिनका चरित्र निवकलित हो। गांधीजी अक्षर ज्ञान को तो उद्देश्य की प्राप्ति का मात्र एक साधन मानते थे। उनके अनुसार शिक्षा प्राप्ति का उद्देश्य केवल नौकरी प्राप्त करना ही नहीं बल्कि खेती और ग्रामीण जीवन को उत्तम बनाना भी होना चाहिए ।
प्रश्न 9. पुंडलीक जी कौन थे?
उत्तर – पुंडलीक जी भितिहरवा आश्रम विद्यालय में शिक्षक थे। गाँधी जी ने 1917 में उन्हें विद्यालय में शिक्षा देने और ग्रामीणों के भयारोहरण के लिए बेलगाँव से बुलाया था । पुंडलीक जी, गाँधी जी के आदर्शों को सच्चे दिल से मानने वाले बड़े ही निर्भय पुरुष थे । उनका व्यक्तित्व काफी तेज पूर्ण तथा उनका शरीर बलिष्ठ व आवाज दबंग थी । पुंडलिक जी ने गाँधी जी से सीखी निर्भीकता गाँव वालों को प्रदान की। यही निर्भीकता चंपारन अभियान की सबसे बड़ी देन है ।
प्रश्न 10. गाँधीजी के चंपारन आंदोलन की किन दो सीखों का उल्लेख लेखक ने किया है। इन सीखों को आज आप कितना उपयोगी मानते हैं?
उत्तर – गाँधीजी के चंपारन आंदोलन की जिन दो सीखों का उल्लेख लेखक ने किया है। वे हैं सदैव निर्भीकता से रहना तथा हर बात को स्वयं सत्यापित करने के बाद ही उस पर अपनी प्रतिक्रिया देना। किसी भी बात को सत्यता के साथ कहने के लिए निर्भीकता बहुत जरूरी होती है ।
वर्तमान समय में ये दोनों सीखें काफी उपयोगी सिद्ध हो सकती हैं, क्योंकि आजकल लोग बिना कुछ सोचे-समझे किसी विषय पर निर्णय ले लेते हैं तथा किसी भी बात पर सहज विश्वास कर लेते हैं और दोषारोपण करने लगते हैं जो बहुत गलत है। इसके दुष्परिणाम उन्हें भुगतने पड़ते हैं ।
प्रश्न 11. यह पाठ आपके समक्ष कैसे प्रश्न खड़ा करता है?
उत्तर – यह पाठ हमारे सामने विभिन्न प्रश्न खड़े करता है जैसे हमारी सांस्कृतिक परंपराएँ कहाँ लुप्त होती जा रही हैं? हम प्रकृति के साथ किस प्रकार खिलवाड़ कर रहे हैं? गाँधीजी का देश के विकास में कितना महत्त्वपूर्ण योगदान है? गाँधीजी की दिनचर्या कितनी व्यस्त थी ? शिक्षा का वास्तविक उद्देश्य क्या है? बाढ़ आदि प्राकृतिक आपदाओं की वजह क्या हैं? हमारा इतिहास कितना विस्तृत है? हमारे देश का प्राकृतिक सौंदर्य कितना अद्भुत है? क्या नवयुग में होने वाले निर्माण वास्तव में हमारे विकास में योगदान देते हैं? ये कुछ ऐसे प्रश्न हैं जो पाठ पढ़ने के बाद हमारे जेहन में उभरने लगते हैं ।
प्रश्न 12. अर्थ स्पष्ट कीजिए-
(क) वसुंधरा भोगी मानव और धर्माधमानव-एक ही सिक्के के दो पहलू हैं ।
(ख) कैसी है चंपारन की यह भूमि ? मानो विस्मृति के हाथों अपनी बड़ी से बड़ी निधियों को सौंपने के लिए प्रस्तुत रहती हैं ।
उत्तर- (क) लेखक के अनुसार, पृथ्वी का भोग करने वाले अर्थात् धरती से पेड़-पौधों आदि को नष्ट करके उससे लाभ उठाने वाले मनुष्य तथा अपने धर्म के प्रति कट्टर रहने वाले और दूसरे के धर्म से द्वेष भाव रखने वाले मनुष्य दोनों की प्रवृत्ति एक समान ही हैं । ये दोनों ही प्रकार के मनुष्य अपने निजी स्वार्थ को सर्वोपरि मानते हैं ।
(ख) लेखक कहता है कि चंपारन भूमि अनेक संत-महात्माओं की तपोस्थली रही है। इसलिए यह धरती तीर्थ स्थल के समान है । प्राचीन काल में यहाँ का प्राकृतिक सौंदर्य, सामाजिक जीवन एवं सांस्कृतिक परंपराएँ उत्कृष्ट थीं । किन्तु अब उन सबका हास हो चुका है। ऐसा प्रतीत होता है कि चंपारन की भूमि अपनी अपार संपत्ति को भूल गई है।
प्रश्न 13. लेखक ने पाठ में विभिन्न जाति के लोगों के विभिन्न स्थानों से आकर चंपारन और उसके आसपास बसने का जिक्र किया है । वे कहाँ-कहाँ से और किसलिए वहाँ आकर बसे ?
उत्तर – लेखक ने स्पष्ट किया है चंपारन में अनेक लोग विभिन्न स्थानों से आकर बसे थे। प्राचीन काल से ही यहाँ आने-जाने वाले लोगों का ताता लगा रहा है। ये मुख्य रूप से यहाँ खेती करने आते थे । थारू नामक जाति राजस्थान से यहाँ आकर बसी थी । दक्षिण बिहार के छोटा नागपुर पठार ते धाँगड़ नामक जाति आई थी। इन जातियों के आने की प्रमुख वजह नील की खेती थी । दक्षिण बिहार के गया जिले की मुइँया जाति के लोग भी नील की खेती करने के लिए चंपारन आए थे।
प्रश्न 14. पाठ में लेखक नारायण का रूपक रचता है और वह सांग रूपक है। रूपक का पूरा विवरण प्रस्तुत कीजिए ।
उत्तर – जब उपमेय पर उपमान का आरोप होता है तब रूपक अलंकार होता है। इस आरोप के दो प्रकार होते हैं- प्रथम अभेदता के द्वारा और द्वितीय तद्रूपता के द्वारा। इस आधार पर रूपक के दो भेद किए जाते हैं- (i) अभेद रूपक तथा (ii) तद्रूप रूपक ।
(i) अभेद रूपक – अभेद रूपक में उपमेय तथा उपमान में कोई भेद नहीं रहता है। इसके तीन भेद होते हैं- (क) अधिक अभेद रूपक (ख) हीन अभेद रूपक (ग) सम अभेद रूपक
(ii) तद्रूप रूपक – तद्रूप रूपक में उपमान, उपमेय का रूप धारण तो कर लेता है किन्तु एक नहीं हो पाता । उसे दूसरा कहकर व्यक्त करते हैं। इसके भी तीन भेद होते हैं-
(क) अधिक तद्रूप रूपक (ख) हीन तद्रूप रूपक (ग) सम तद्रूप रूपक
इनके अलावा रूपक के निम्नलिखित तीन भेद और माने जाते हैं-
(क) सांग रूपक (ख) निरंग रूपक (ग) परंपरित रूपक
(क) सांग (सावयव) रूपक- जहाँ पर उपमेय में उपमान का अंगों सहित आरोप होता है, वहाँ सांग रूपक पाया जाता है।
उदाहरण के लिए, – ‘नारि कुमुदिनी अवध सर, रघुबर बिरह दिनेस । अस्त भये बिकसित भईं, निरखि राम राकेस ।।’
(ख) निरंग (नरवयव ) रूपक – जिस स्थान पर संपूर्ण अंगों का साम्य होने की बजाए केवल एक ही अंग का आरोप किया
जाता है, वहाँ निरंग रूपक पाया जाता है । उदाहरण के लिए,
‘अवसि चलिय बन राम पहँ, भरत मंत्र भलकीन्ह ।
सोक – सिंधु बूड़त सबहिं, तुम अवलंबन दीन्ह । । ‘
(ग) परंपरित रूपक – जहाँ प्रधान रूपक किसी अन्य रूपक पर आश्रित होता है तथा किसी दूसरे रूपक की मदद के बिना
स्पष्ट नहीं होता है, वहाँ परंपरित रूपक होता है । उदाहरण के लिए,
‘सुनिय तासु गुन ग्राम जासु नाम अध-खग बधिक ।’
प्रश्न 15. नीलहे गोरों और गाँधीजी से जुड़े प्रसंगों को अपने शब्दों में लिखिए ।
उत्तर – नीलहे गोरों द्वारा चंपारन के किसानों का भरपूर शोषण किया गया था । वे किसानों से जबरन नील की खेती कराते थे। नील की खेती हर छोटे-बड़े किसान के लिए अनिवार्य थी । इससे गोरों को काफी लाभ हुआ तथा उनकी भव्य कोठियाँ खड़ी हो गईं। उनका साम्राज्य आसपास के इलाकों में भी फैला हुआ था । वे अपनी इच्छानुसार कुछ भी करने के लिए स्वतंत्र थे। तत्कालीन शासन नीलहे गोरों के हाथ की कठपुतली था । शासन के बड़े-बड़े अफसर भी इन्हीं गोरों की छत्रछाया में पल रहे थे ।
गाँधीजी के चंपारन आने से मानो एक बिजली-सी कौंध गई। उन्होंने चंपारन के किसानों की दशा सुधारने तथा क्षेत्र में शिक्षा की व्यवस्था करने की दिशा में महत्त्वपूर्ण कार्य किए। उन्होंने चंपारन के किसानो में निर्भीकता की भावना उत्पन्न की तथा उनके हृदय में सत्य की भावना को स्थापित किया । गरीब जन समुदाय की स्थिति को सुधारने के लिए भी गाँधीजी ने कई महत्त्वपूर्ण प्रयास किए।
प्रश्न 16. चौर और मन किसे कहते हैं? वे कैसे बने और उनमें क्या अंतर है?
उत्तर – चौर उथले हुए ताल हैं जिनमें सर्दियों और गर्मियों में पानी कम होता है तथा ये खेती में काम आते हैं। मन विशाल तथा गहरे ताल हैं । ‘मन’ शब्द मानस का अपभ्रंश है। जब गंडक नदी में बाढ़ आती है तो नदी अपना पथ बदल लेती है। पुराने पथ पर कुछ उथले व कुछ गहरे गड्ढे बन जाते हैं जिनसे चौर और मन का निर्माण होता है । इनमें प्रमुख अंतर यह है कि चौर तुलना में मन ज्यादा गहरे होते हैं।
प्रश्न 17. कपिलवस्तु से मगध के जंगलों तक की यात्रा बुद्ध ने किस मार्ग से की थी ?
उत्तर – बुद्ध ने कपिलवस्तु से पंडई नदी के सहारे भिखनाथोरी, भितिहरवा, रामपुरवा, लौरिया, नंदनगढ़, अरेराज, केसरिया
होते हुए मगध के जंगलों तक की यात्रा पूर्ण की ।
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