Class 12th Hindi usne kaha tha Chapter Subjective Question | कक्षा 12 हिन्दी उसने कहा था चैप्टर का महत्वपूर्ण प्रशन
प्रश्न 1. ‘उसने कहा था’ कहानी कितने भागों में बँटी हुई है? कहानी के कितने भागों में युद्ध का वर्णन है?
उत्तर- उसने कहा था कहानी पाँच भागों में बँटी हुई है इसके तीन भागों में युद्ध का वर्णन किया गया है।
प्रश्न 2. ‘उसने कहा था’ कहानी के पात्रों की एक सूची तैयार करें।
उत्तर – पात्र का नाम
1. सूबेदारनी – सूबेदार हजारासिंह की पत्नी
2. लहना सिंह – सिख राइफल्स जमादार
3. हजारा सिंह – सूबेदारिनी का पति तथा फौजी
4. वजीरा सिंह – पलटन का विदूषक
5. बोधा सिंह – सूबेदार का बेटा तथा फौजी
6. कीरत सिंह – फौजी
7. महा सिंह – फौजी
8. लपटन साहब – फौजी
9. अतर सिंह – सूबेदारिनी का मामा
प्रश्न 3. लहनासिंह का परिचय अपने शब्दों में दें।
उत्तर – लहनासिंह एक फौजी है। वह कहानी का प्रमुख पात्र तथा नायक है। कहानी में उसका चरित्र पूरी तरह उभर कर आया है। कहानी में उसके चरित्र कुछ विशेषताएँ प्रमुखतया नजर आती हैं जो इस प्रकार हैं-
1. कहानी का नायक- कहानी का संपूर्ण घटनाक्रम लहनासिंह के इर्दगिर्द, घटित होता है। इससे यह स्पष्ट होता है कि वह कहानी का प्रमुख पात्र तथा नायक है।
2. बहादुर तथा निडर- लहनासिंह बहुत ही बहादुर तथा निडर व्यक्ति है। वह खंदकों में खाली बैठे रहने से युद्ध को बेहतर समझता है। साथ ही वह अद्भुत वीर है तथा खतरे के समय भी अपना मानसिक संतुलन बनाए रखता है। उसने अपनी निडरता के कारण ही नकली लपटन साहब को भी मार गिराया था ।
3. सहानुभूति तथा दयालुपन- लहनासिंह के चरित्र की एक और विशेषता है-सहानुभूति तथा दयाभाव। इसी भावना के चलते वह भीषण सर्दी में भी अपने कंबल तथा जर्सी बीमार बोधासिंह को दे देता है तथा स्वयं उसकी जगह खंदक के दरवाजे पर पहरा देता है।
4. चतुर – लहनासिंह बहादुर होने के साथ-साथ काफी चतुर भी है। उसे यह पहचानने में देर नहीं लगी कि लपटन साहब असली नहीं बल्कि कोई जर्मन जासूस है। उसने काफी चतुराई के साथ उसका भांडा फोड़ दिया ।
5. सच्चा प्रेमी-लहनासिंह एक सच्चा प्रेमी है। बचपन खेल-खेल में उसके दिल में एक अनजान भावना उत्पन्न हुई जो प्रेम था। हालांकि वह अपना प्रेम प्राप्त नहीं कर सका लेकिन फिर भी उसने अपने उस बचपन के प्यार को सच्चाई के साथ अपने हृदय में बसाए रखा ।
6. वचन पालन – सूबेदारनी ने लहनासिंह से कहा था कि वह उसके पति और बेटे के प्राणों की रक्षा करे। लहनासिंह ने उसे एक वचन की तरह निभाया तथा इस वचन को पूरा करने के लिए अपने प्राण भी न्योछावर कर दिए।
प्रश्न 4. पाठ से लहना और सूबेदारनी के संवादों को एकत्र करें।
उत्तर- इस पाठ में लहनासिंह तथा सूबेदारनी के मध्य कुछ ही संवाद हैं जो इस प्रकार हैं-
“तेरे घर कहाँ हैं?”
“मगरे में- और तेरे !”
“माँझे में; यहाँ कहाँ रहती है?” .
“ अतरसिंह की बैठक में, वे मेरे मामा होते हैं।”
“मैं भी मामा के यहाँ हूँ, उनका घर गुरु बाजार में है।”
इतने में दुकानदार ………… लड़के ने मुसकुराकर पूछा – “तेरी कुड़माई हो गई?” इस पर लड़की कुछ आँखें चढ़ाकर ‘धत्’ कहकर दौड़ गई।
……….. लड़के ने फिर पूछा – “तेरी कुड़माई हो गई?” और उत्तर में वही ‘धत्’ मिला। एक दिन जब फिर लड़के ने वैसे ही हँसी में चिढ़ाने के लिए पूछा तब लड़की, लड़के की संभावना के विरुद्ध बोली- “हाँ, हो गई ।”
“कब ?”
“कल-देखते नहीं यह रेशम से कंढ़ा हुआ सालू!”
“मुझे पहचाना?”
“नहीं।”
“तेरी कुड़माई हो गई? ‘धत्’ -कल हो गई-देखते नहीं रेशमी बूटोंवाला सालू- अमृतसर में- ” सूबेदारनी कह रही है- “मैंने तेरे को आते ही पहचान लिया। एक काम कहती हूँ। मेरे तो भाग फूट गए। सरकार ने बहादुरी का खिताब दिया है, लायलपुर में जमीन दी है, आज नमकहलाली का मौका आया है। पर सरकार ने हम तीमियों की घघरिया पलटन क्यों न बना दी जो मैं भी सूबेदार जी के साथ चली जाती ? एक बेटा है। फौज में भरती हुए एक ही वर्ष हुआ। उसके पीछे चार और हुए पर एक भी नहीं जिया ।” (रोते हुए) “अब दोनों जाते हैं। मेरे भाग! तुम्हें याद है कि एक दिन टाँगे वाले का घोड़ा दही वाले की दुकान के पास बिगड़ गया था। तुमने उस दिन मेरे प्राण बचाए थे। आप घोड़े की लातों में चले गए थे और मुझे उठाकर दुकान के तख्ते पर खड़ा कर दिया था। ऐसे ही इन दोनों को बचाना। यह मेरी भिक्षा है । तुम्हारे आगे मैं आँचल पसारती हूँ।”
प्रश्न 5. “कल, देखते नहीं यह रेशम से कढ़ा हुआ सालू ।” यह सुनते ही लहना की क्या प्रतिक्रिया हुई?
उत्तर – यह सुनते ही लहना पर वज्रपात सा होता है उसे बहुत गुस्सा आता है और वह अपनी सुध-बुध खो बैठता है। घर लौटते समय वह किसी को नाली में ढकेलता है, तो किसी छाबड़ीवाले की छाबड़ी गिरा देता है, किसी सब्जीवाले के ठेले में दूध उड़ेल देता है किसी कुत्ते को पत्थर मारता है तथा सामने आती हुई वैष्णवी को टक्कर मारकर उससे गाली खाता है ।
प्रश्न 6. “जाड़ा क्या है, मौत है और निमोनिया से मरनेवालों को मुरब्बे नहीं मिला करते”, वजीरासिंह के इस कथन का क्या आशय है?
उत्तर- वजीरासिंह के इस कथन का आशय है कि वहाँ युद्ध के मैदान में बहुत अधिक ठंड पड़ रही है जो जानलेवा साबित हो रही है। इस स्थिति में लोगों को निमोनिया हो रहा है पर लहनासिंह इस पर भी अपना कंबल, जर्सी बोधा सिंह को दे रहा है । उसे इसके लिए कोई इनाम नहीं मिलने वाला। वह ठंड के कारण मर सकता है।
प्रश्न 7. “कहती है तुम राजा हो, मेरे मुल्क को बचाने आए हो।” वजीरा के इस कथन में किसकी ओर संकेत है?
उत्तर- वजीरा के इस कथन में फ्रांस की फिरंगी मेम की ओर संकेत किया गया है।
प्रश्न 8. लहनासिंह के गाँव में आया तुर्की मौलवी क्या कहता था ?
उत्तर- लहनासिंह के गांव में आया तुर्की मौलवी कहता था, जर्मनीवाले बड़े पंडित हैं। वेद पढ़-पढ़कर उसमें से विमान चलाने की विद्या जान गए हैं। गौ को नहीं मारते। हिन्दुस्तान आएंगे तो गौ हत्या बंद कर देंगे ।
प्रश्न 9. लहना सिंह का दायित्व बोध और उसकी बुद्धि दोनों ही स्पृहणीय हैं। इस कवन की पुष्टि करें।
उत्तर- लहना सिंह अपने दायित्व के प्रति पूर्णतया सजग है। उससे निवेदनपूर्वक जिसने जो कुछ कहा, वह सक्रिय होकर उसे पूरा करने के लिए अपनी संपूर्ण कार्यक्षमता, पूरी लगन, मनोबल तथा धैर्य के साथ लग जाता था। इसके लिए उसे चाहे जो भी कष्ट उठाना पड़े, पर वह पीछे नहीं हटता था।
इसी प्रकार उसकी बुद्धि भी काफी तीव्र है। वह जर्मन जासूस को पलभर में पहचान लेता है कि वह लपटन साहब नहीं है। वह अपना मानसिक संतुलन बनाए रखता है तथा अपनी चतुराई से उसे मार गिराता है।
इस प्रकार यह कथन पूर्णतया सत्य प्रतीत होता है कि लहना सिंह का दायित्वबोध तथा उसकी बुद्धि, दोनों ही स्पृहणीय हैं।
प्रश्न 10. प्रसंग एवं अभिप्राय बताएँ-
‘मृत्यु के कुछ समय पहले स्मृति बहुत साफ हो जाती है। जन्म भर की घटनाएँ एक-एक करके सामने आती हैं। सारे दृश्यों के रंग साफ होते हैं; समय की धुंध बिलकुल उनपर से हट जाती है !’
उत्तर- प्रसंग- प्रस्तुत गद्यांश हिंदी साहित्य के प्रसिद्ध कहानीकार चंद्रधर शर्मा गुलेरी द्वारा रचित अमर कहानी ‘उसने कहा था’ से अवतरित है। कहानी का प्रमुख पात्र लहनासिंह युद्ध क्षेत्र में गंभीर रूप से घायल हो गया है। वह मृत्यु के निकट है। इस वक्त उसके दिमाग में पुरानी यादें आ रही हैं।
व्याख्या- जब मनुष्य की मृत्यु समीप होती है तो पुरानी स्मृतियाँ उसके समक्ष स्पष्ट होने लगती हैं। सारे जीवन की घटनाएँ उसके सामने घूमने लगती हैं। ये सारी घटनाएँ उसे ऐसे दिखाई देती हैं जैसे सब कुछ अभी घटित हो रहा हो। घटनाओं पर समय के कारण जो धुंधलापन आ गया था, वह धुंधलका छँट जाता है तथा सब कुछ स्पष्ट नज़र आने लगता हैं।
प्रश्न 11. मर्म स्पष्ट करें-
(क) अब के हाड़ में यह आम खूब फलेगा। चाचा भतीजा दोनों यहीं बैठकर आम खाना। जितना बड़ा भतीजा है उतना ही यह आम है। जिस महीने उसका जन्म हुआ था उसी महीने में मैंने इसे लगाया था।
उत्तर- लहनासिंह युद्ध में बुरी तरह जख्मी हो गया है। उसकी मृत्यु निकट है। इस वक्त अतीत की स्मृतियाँ उसके मस्तिष्क घूम रही हैं। अपने मित्र हजारा सिंह की रक्षा हेतु उसकी पत्नी को उसने वचन दिया है। अपने अंतिम क्षणों में वह वजीरा सिंह से कह रहा है कि बस, अब के आषाढ़ महीने में यह आम खूब फलेगा। तुम दोनों चाचा-भतीजा यहीं बैठकर जी भरकर आम खाना । यह आम का पेड़ भी तेरे भतीजे की उम्र का ही है, जिस महीने उसका जन्म हुआ था, उसी महीने मैंने पेड़ को लगाया था।
(ख) ‘और अब घर जाओ तो कह देना कि मुझे जो उसने कहा था वह मैंने कर दिया।
उत्तर- युद्ध में बुरी तरह से घायल लहना सिंह अपने मित्र हजारा सिंह को कहता है घर जाना तो अपनी पत्नी सूबेदारनी को कह देना, या पत्र लिखकर उसे बता देना कि उसने अपने पति तथा बेटे का ख्याल रखने का जो निवेदन किया था उसे मैंने पूरा कर दिया है।
प्रश्न 12. कहानी का शीर्षक ‘उसने कहा था’ सबसे सटीक शीर्षक है। अगर हाँ तो क्यों, या आप इसके लिए कोई दूसरा शीर्षक सुझाना चाहेंगे। अपना पक्ष रखें।
उत्तर- जहाँ तक कहानी के शीर्षक का सवाल है। ‘उसने कहा था’ शीर्षक पूरी तरह से सटीक जान पड़ता है। सूबेदारनी की बातें सूबेदारनी के चरित्र को तो उजागर करती ही हैं वे लहनासिंह के चरित्र में भी महत्त्वपूर्ण मोड़ लानेवाली साबित होती हैं। सूबेदारनी की कही हुई बातें ही उनके बीच के संबंधों को उजागर करती हैं जो कहानी का मुख्य प्रतिपाद्य है। मृत्यु की तरफ बढ़ते लहनासिंह के अंतिम क्षणों में भी सूबेदारनी के कहे शब्द उसके कानों में गूंजते रहते हैं। यही शब्द लहनासिंह को सूबेदारनी का विश्वास बनकर महान त्याग की प्रेरणा देते हैं।
प्रश्न 13. ‘उसने कहा था’ कहानी का केंद्रीय भाव क्या है? वर्णन करें।
उत्तर- ‘उसने कहा था’ कहानी प्रथम विश्वयुद्ध की पृष्ठभूमि में लिखी गई है। लेखक ने लहनासिंह तथा सूबेदारनी के माध्यम से मानवीय संबंधों का नया रूप प्रस्तुत किया है। कहानी का केंद्रीय भाव शुद्ध प्रेम की आध्यात्मिक अनुभूति और उसकी स्वाभाविक उत्सर्गमय अभिव्यक्ति है। इसमें प्रेम के एक ऐसे पवित्र रूप को चित्रित किया गया है जिसकी प्राप्ति नहीं होती है।
आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने भी बड़े ही सुंदर ढंग से इस कहानी के भाव के विषय में लिखा है- “उसने कहा था मैं पक्कै यथार्थवाद के बीच, सुरुचि की चरम मर्यादा के भीतर, भावुकता का चरम उत्कर्ष अत्यंत निपुणता के साथ संपुटित है। इसकी घटना ऐसी है जैसी बराबर हुआ करती है, पर उसमें भीतर से प्रेम का एक स्वर्गीय स्वरूप झाँक रहा है। केवल झाँक रहा है, निर्लज्जता के साथ पुकार या कराह नहीं रहा है। कहानी भर में कहीं प्रेमी की निर्लज्जता, प्रगल्भता, वेदना की वीभत्स विवृति नहीं है सुरुचि के सुकुमार स्वरूप पर कहीं आघात नहीं पहुँचता । इसकी घटनाएँ ही बोल रही हैं, पात्रों के बोलने की अपेक्षा नहीं।”
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