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Class 12th Hindi ‘Ek Lekh Ek Patra’ Chapter Subjective Question | कक्षा 12 हिन्दी ‘एक लेख और एक पत्र ‘ चैप्टर का महत्वपूर्ण प्रशन

Class 12th Hindi ‘Ek Lekh Ek Patra’ Chapter Subjective Question | कक्षा 12 हिन्दी ‘एक लेख और एक पत्र ‘ चैप्टर का महत्वपूर्ण प्रशन


प्रश्न 1. विद्यार्थियों को राजनीति में भाग क्यों लेना चाहिए? 

उत्तर- विद्यार्थी देश के कर्णधार होते हैं। आने वाले समय में उन्हें ही देश की बागडोर अपने हाथ में लेनी है। अगर वे आज से ही राजनीति में भाग नहीं लेंगे तो आने वाले समय में देश को भली-भाँति नहीं सँभाल पाएँगे। देश के उचित विकास व उसे सही दिशा में ले जाने के लिए विद्यार्थियों का राजनीति में भाग लेना बहुत आवश्यक है ।


प्रश्न 2. भगत सिंह को विद्यार्थियों से क्या अपेक्षाएँ हैं? 

उत्तर- भगत सिंह के विद्यार्थियों से काफी अपेक्षाएँ हैं। वे कहते हैं कि भारत को ऐसे देशसेवकों की आवश्यकता है जो देश पर तन-मन-धन अर्पित कर सकें तथा अपना सारा जीवन देश की आज़ादी के लिए या विकास के लिए न्योछावर कर दें। यह कार्य सिर्फ विद्यार्थी ही कर सकते हैं। विद्यार्थी और नौजवान ही क्रांति कर सकते हैं । अतः विद्यार्थी पढ़ें तथा साथ ही राजनीति का भी ज्ञान प्राप्त करें तथा आवश्यकता पड़ने पर मैदान में कूद पड़ें और अपना जीवन इसी काम में लगा दें।


प्रश्न 3. भगत सिंह के अनुसार ‘केवल कष्ट सहकर भी देश की सेवा की जा सकती है?” उनके जीवन के आधार पर इसे प्रमाणित करें। 

उत्तर- भगत सिंह एक ऐसे क्रांतिकारी थे जो देश की आज़ादी के साथ-साथ समाज की उन्नति की भी प्रबल इच्छा रखते थे। उनका मानना था कि केवल कष्ट सहकर भी देश की सेवा की जा सकती है। उन्होंने अपने जीवन में भी इस बात को अपनाया था। इसीलिए असेंबली सभा में बम फेंकने के बाद वे वहाँ से भागने की बजाय बंदी बन गए। इस प्रकार उन्होंने अपने कार्यों तथा उद्देश्यों के प्रति अधिक-से-अधिक लोगों का ध्यान आकर्षित किया। जेल में उन्होंने घटिया भोजन, कैदियों के साथ होने वाले अमानवीय व्यवहारों का विरोध किया, जिस कारण उन्हें विभिन्न प्रकार की यातनाएँ सहन करनी पड़ीं। 

किन्तु अंततः हारकर प्रशासन को जेल की व्यवस्था में सुधार करने पड़े। इस प्रकार भगत सिंह स्वयं कष्ट सहकर हर बुराई का विरोध करते रहे तथा भविष्य के लिए व्यवस्था की सही करवाने में सफल रहे।


प्रश्न 4. भगत सिंह ने कैसी मृत्यु को ‘सुंदर’ कहा है? वे आत्महत्या को कायरता कहते हैं, इस संबंध में उनके विचार को स्पष्ट करें। 

उत्तर- भगत सिंह ने देश सेवा के बदले दी गई फाँसी को ‘सुन्दर मृत्यु’ कहा है। उनके अनुसार जिन देशभक्तों को यह विश्वास है कि उनको मृत्युदंड दिया जाएगा, उन्हें उस दिन की धैर्यपूर्वक प्रतीक्षा करनी चाहिए जब उन्हें फाँसी दी जाएगी, यह मृत्यु साधारण मृत्यु से सुंदर तथा गौरवशाली होगी। 

वहीं आत्महत्या के विषय में भगत सिंह कहते हैं कि कुछ दुखों से बचने के लिए अपने जीवन को समाप्त कर देना कायरता है। यह एक घृणित कार्य है तथा ऐसा करना सर्वथा अनुचित है। भगत सिंह का विचार था कि उनके जैसा विश्वास और विचारों पर चलने वाला व्यक्ति व्यर्थ में मरना कदापि सहन नहीं कर सकता ।


प्रश्न 5. भगत सिंह रूसी साहित्य को इतना महत्त्वपूर्ण क्यों मानते हैं? वे एक क्रांतिकारी से क्या अपेक्षाएँ रखते हैं? 

उत्तर- भगत सिंह रूसी साहित्य को बहुत अधिक महत्त्वपूर्ण मानते हैं क्योंकि जो वास्तविकता रूसी साहित्य में प्राप्त होती है, वह भारतीय साहित्य में कदापि नजर नहीं आती। उनकी कहानियों में वर्णित कष्टकारी और दुखमयी स्थितियाँ हमें जीवन के कष्टों का डटकर सामना करने की प्रेरणा देती हैं। उनके साहित्य में वर्णित पात्रों के चरित्र असाधारण ऊँचाइयों वाले होते हैं। विपत्तियाँ सहन करने के साहित्य के उल्लेख ने उन कहानियों में सहृदयता, दर्द की गहरी टीस और उनके चरित्र तथा साहित्य को नवीन ऊँचाई प्रदान की है। 

भगत सिंह चाहते थे कि एक क्रांतिकारी को विपत्तियों, चिंताओं, दुखों और कष्टों को सहन करने के लिए तत्पर रहना चाहिए। ये ऐसे कष्ट हैं जो हमारे क्रांतिकारी कार्यों के कारण उत्पन्न होते हैं। वे चाहते थे कि हमारे क्रांतिकारी भी रूसी साहित्य को पढ़ें तथा उनमें वर्णित स्थितियों को अपने जीवन में लागू करें।


प्रश्न 6. ‘उन्हें चाहिए कि वे उन विधियों का उल्लंघन करें परन्तु उन्हें औचित्य का ध्यान रखना चाहिए, क्योंकि अनावश्यक एवं अनुचित प्रयत्न कभी भी न्यायपूर्ण नहीं माना जा सकता।’ भगत सिंह के इस कथन का आशय बतलाएँ। इससे उनके चिंतन का कौन-सा पक्ष उभरता है, वर्णन करें। 

उत्तर- भगत सिंह क्रांतिकारियों को संबोधित करते हुए कहते हैं कि अगर शासक शोषक हो तथा कानून व्यवस्था गरीब-विरोधी और मानवता-विरोधी हो तो उन्हें उसका पुरजोर विरोध करना चाहिए। किन्तु उन्हें इस बात का भी ख्याल रखना चाहिए कि आम जनता पर इसका कोई दुष्प्रभाव न पड़े। वह संघर्ष आवश्यक हो अनुचित नहीं क्योंकि आवश्यकता के लिए किए गए संघर्ष को ही न्यायपूर्ण माना जाता है किन्तु अगर यह बदले की भावना से हो तो इसे अन्यायपूर्ण माना जाएगा। हमें विरोध करना चाहिए परन्तु उसका तरीका उचित तथा न्यायपूर्ण होना चाहिए। उपरोक्त विचारों में भगत सिंह के चिंतन का मानवतावादी पक्ष नजर आता है जिसमें समस्त मानव जाति का कल्याण निहित है।


प्रश्न 7. निम्नलिखित कथनों का अभिप्राय स्पष्ट करें- 

(क) मैं आपको बताना चाहता हूँ कि विपत्तियाँ व्यक्ति को पूर्ण बनाने वाली होती हैं। 

(ख) हम तो केवल अपने समय की आवश्यकता की उपज हैं  

(ग) मनुष्य को अपने विश्वासों पर दृढ़तापूर्वक अडिग रहने का प्रयत्न करना चाहिए। 

उत्तर- (क) भगत सिंह मानते हैं कि विपत्तियाँ मनुष्य को पूर्णता प्रदान करती हैं। अर्थात् जब मनुष्य पर कोई दुख आता है तो वह उसे दूर करने का प्रयास करता है, जिससे उसके ज्ञान तथा कार्य-क्षमता में वृद्धि होती है, वह पूर्णता प्राप्त करता है। 

(ख) भगत सिंह के अनुसार, मनुष्य सोचता कि अगर वह कोई कार्य नहीं करेगा तो वह कार्य नहीं होगा, पूरी तरह गलत है। वस्तुतः मनुष्य विचार का जन्मदाता नहीं है, अपितु विशेष विचारों वाले व्यक्तियों को परिस्थितियाँ उत्पन्न करती हैं। हम तो केवल अपने समय की आवश्यकता की उपज हैं। 

(ग) भगत सिंह कहते हैं कि अगर हम किसी लक्ष्य या उद्देश्य का निर्धारण करते हैं तो हमें उस पर अडिग रहना चाहिए। हमें अपने मन में यह विश्वास रखना चाहिए कि हम अपने लक्ष्य की प्राप्ति में अवश्य ही सफल होंगे।


प्रश्न 8. जब देश के भाग्य का निर्णय हो रहा हो तो व्यक्तियों के भाग्य को पूर्णतया भुला देना चाहिए। आज जब देश आजाद है, भगत सिंह के इस विचार का आप किस तरह मूल्यांकन करेंगे? अपना पक्ष प्रस्तुत करें। 

उत्तर- उपरोक्त कथन भगत सिंह की मानवतावादी दृष्टि का परिचायक है जिसमें व्यक्ति अपने निजी स्वार्थ से ऊपर उठकर समष्टि के विषय में सोचता है तथा उसके लिए अपना तन, मन, धन सब कुछ अर्पित कर देता है । परन्तु आज इस प्रकार की भावना का लेशमात्र भी व्यक्ति के मन में नहीं है। व्यक्ति अपनी स्वार्थपरता में अपने सारे मूल्य गवां बैठा है। आज भारतवासी अपने ही देश में भ्रष्टाचार की मुट्ठी में फंसकर विनाश के गर्त में जा रहा है। अपराधी व घूसखोर जनता को लूट रहे हैं तथा राजनीति का अपराधीकरण चरम सीमा पर पहुँच चुका है। आतंकवादी गतिविधियाँ दिनों-दिन बढ़ती जा रही हैं। 

ऐसे में यह आवश्यक है कि देश का हर नागरिक अपने से पहले देश की श्रेष्ठता-विकास तथा मान-सम्मान के विषय में सोचे। तभी भारतवर्ष अपना प्राचीन गौरव पुनः प्राप्त कर सकता है


प्रश्न 9. भगत सिंह ने अपनी फाँसी के लिए किस समय की इच्छा व्यक्त की है? वे ऐसा समय क्यों चुनते हैं? 

उत्तर- भगत सिंह अपनी इच्छा व्यक्त करते हुए कहते हैं कि उन्हें फाँसी उस वक्त दी जाए जब यह आंदोलन अपनी चरम सीमा पर पहुँच चुका हो। वे ऐसा समय इसलिए चुनते हैं क्योंकि वे नहीं चाहते कि देश की आज़ादी के लिए यदि कोई सम्मानपूर्ण अथवा उचित समझौता होना हो तो उस वक्त उन जैसे व्यक्तियों का मामला उसमें कोई व्यवधान उत्पन्न करे ।


प्रश्न 10. भगत सिंह के इस पत्र से उनकी गहन वैचारिकता, यथार्थवादी दृष्टि का परिचय मिलता है। पत्र के आधार पर इसकी पुष्टि करें। 

उत्तर- भगत सिंह का यह पत्र उनकी गहन वैचारिकता एवं यथार्थवादी दृष्टि को उजागर करता है। वे कई विषयों पर अत्यधिक महत्त्वपूर्ण विचार प्रकट करते हैं। वे आत्महत्या को एक घृणित एवं कायरतापूर्ण कार्य मानते हैं। उनका विचार है कि फाँसी से प्राप्त मृत्यु अत्यंत सुंदर है। कष्ट सहन करके देश की सेवा करने को अधिक महत्त्व देते हैं। वे कहते हैं कि क्रांतिकारियों को हमेशा विपत्तियों, दुखों तथा कष्टों को सहन करने के लिए तत्पर रहना चाहिए। जेल के जीवन के दौरान उन्होंने कुछ विषयों का अध्ययन किया जिसे वे बहुत महत्त्वपूर्ण मानते हैं। उनके अनुसार किसी भी कार्य को करने से पहले उसकी उपयुक्तता तथा गरिमा का ध्यान रखा जाना अत्यावश्यक होता है। वे अपमानपूर्ण स्थितियों का विरोध करने की बात भी करते हैं। वे मनुष्य को समय की आवश्यकता की उपज मानते हैं। वे कहते हैं कि कोई मनुष्य किसी विचार को जन्म नहीं देता है बल्कि विचार तो समय और परिस्थिति के कारण उत्पन्न होते हैं । भगत सिंह अपने जीवन का ज्यादा-से-ज्यादा मूल्य प्राप्त करने के इच्छुक हैं। वे मृत्युदंड को अपने लिए उपयुक्त मानते हुए किसी प्रकार की क्षमा याचना नहीं करना चाहते। वे देश के भाग्य को व्यक्तियों के भाग्य से बहुत बड़ा मानते हैं। इस पत्र में उनके गहन विचार एवं यथार्थवादी दृष्टि का परिचय मिलता है।


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